इसे कहते है मियाँ की जुती मियाँ के सर जी हाँ, अब मच्छर लड़ेगा मलेरिया से, सुनने में बड़ा अटपटा लगता है और लगे भी क्यों न, जिस मलेरिया का नाम लेते ही जेहन में मच्छरों के तस्वीर उभरती है. उसी का उपयोग मलेरिया से मुक्ति दिलाने के रूप में किया जा रहा हो तो यह स्वाभाविक ही है.
यह कारनामा यूरोपीय वैज्ञानिको ने किया है. मच्छर को मलेरिया से मुक्ति अभियान का सिपाही बनाया है. जर्मिनी और ब्रिटेन के वैज्ञानिको ने इस अभियान की नीव तो तीन साल पहले वैज्ञानिको ने रख दी थी, लेकिन इसमें निर्णयक सफलता पिछले दिनों ही मिली.
जर्मनी में हाइडल वर्ग स्थित यूरोपियन बायोलोजी लेबोरेटरी के वैज्ञानिक तथा लंदन स्थित इम्पीरियल कालेज के विधार्थियों चिकित्सकों ने तीन साल पहले ही मच्छर की जेनोम प्राणी में फेर बदल करके मच्छर को शत्रु से मित्र बनाने का करिश्मा कर दिखाया था.
दरअसल इन वेज्ञानिको ने किया यह है कि मच्छर के जीनोम में एक पराया जीन डाल दिया. यह मार्कर का काम करने लगा. यानी मलेरिया के वंशाणुओ को काबू में कर लिया गया. इसका नतीजा यह निकला कि अब वैज्ञानिको के हाथ में मच्छरों की वंश वृद्धि का नियंत्रण आ गया.
वास्तव में वैज्ञानिक ने किया. यह है कि मलेरिया पैदा करने वाले परजीवी के साथ सदियों से चले आ रहे मलेरिया मच्छर के रिश्ते में दरार दाल दी. यूरोपीय वैज्ञानिकों के बाद विश्व के कई वैज्ञानिकों ने इस प्रयोग को सिद्ध किया.
अगले कुछ सालों में ऐसा मच्छर तैयार हो जाएगा जो सुरक्षित होगा और मलेरिया पैदा करने वाले परजीवी को फ़ैलाने में असमर्थ होगा.
गौरतलब है कि तमाम चिकित्सकीय प्रगति के बावजूद हर साल 50 करोड़ लोग मलेरिया से संक्रमित होते है. और उनमे से 25 लाख से ज्यादा अपने प्राण गवां बैठते है. यह रोग अत्यंत सूक्ष्म परजीवी प्लासमोडियम से पैदा होता है. यह एक कोशिका वाला प्रोतोजोवा है. एक बार मनुष्य की रक्त प्रणाली में घुसपैठ होने पर यह परजीवी मनुष्य के जिगर में आसन जमा लेता है. और इतनी संख्या बड़ा देता है कि रक्त में उपस्थित लाल कोशिकाओ को मकाबले में पीछे धकेल देता है. तो इस प्रणाली के आने के बाद हम यह आशा कर सकते है कि आने वाला कल मलेरिया मुक्त होगा.
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